गाँवों से शहरों की ओर हो रहा पलायन हो या गाँवों का शहरीकरण, देश में ग्रामीण आबादी लगातार कम हो रही है। जबकि इसके उलट शहरी आबादी बढ़ रही है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार पिछले एक दशक में ग्रामीण आबादी 72.19 फीसदी से घटकर 68.84 फीसदी हो गई है, यानि कि 2001 से 2011 के बीच ग्रामीण आबादी में 3.5 फीसदी की कमी दर्ज की गई। जबकि इसी बीच शहरी आबादी 27.81 प्रतिशत जो साल 2001 में थी, बढ़कर साल 2011 में 31.16 प्रतिशत हो गयी। करीब 20 साल पहले गाजीपुर जिले के गाँव उसियां से जमील खान (34) पढ़ाई करने के लिए कानपुर शहर आए थे। जमील ने यहीं व्यापार शुरू किया और वो आज यहीं के निवासी हो गए हैं समय के साथ-साथ उसकी जरूरतें बढ़ीं और उन्हें लगता है कि उन जरूरतों को ये शहर ही पूरा कर सकता है। आज जमील बड़े आत्मविश्वास के साथ कहते हैं, ”मैं जिन जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने गाँव से शहर आया था वे जरूरतें इस शहर ने पूरी की है।” हालांकि गाँव छोडऩे का मलाल उन्हें अब भी है। वो कहते हैं, ”शहरों में मिलने वाली सुविधाएं यदि गाँवों में दी जाएं तो मेरे जैसे लोगों को अपना गाँव छोड़कर शहर ना भागना पड़े।”
साल 2011 की जनगणना के अनुसार पिछले एक दशक में लगभग 1 करोड़ 44 लाख लोगों ने रोजगार के लिए गाँवों से शहरों की तरफ रुख किया, जिसमें 1 करोड़ 24 लाख पुरुष और 20 लाख महिलाएं थीं। वहीं, दूसरी ओर करीब 62 लाख लोगों ने शहरों से गाँवों की ओर रुख किया। दूसरी ओर, डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय में समाजशास्त्री डॉ. संजय सिंह, शहरी आबादी के बढऩे और ग्रामीण आबादी के लगातार कम होने की प्रमुख वजह गाँवों से शहरों की तरफ पलायन नहीं बल्कि गाँवों का शहरीकरण मानते हैं। वह कहते हैं, ”शहरों के आसपास के क्षेत्र जो पहले गाँव थे वो अब शहर में आ गए हैं। शहर धीरे-धीरे फैल रहे हैं जिससे शहरों के आसपास के गाँव के लोग भी शहरी आबादी में शामिल हो गए है।”
2011 की जनगणना के आंकड़ों से साफ पता चलता है कि किस तरह से ग्रामीण आबादी के एक बड़े हिस्से ने गाँवों से शहरों की तरफ रुख किया है। हालांकि पिछले एक दशक में गाँवों की संख्या में करीब 2200 की बढ़ोत्तरी हुई है। साल 2001 में भारत में कुल गाँवों की संख्या 6,38,596 थी, जो बढ़कर साल 2011 में 6,40,875 हो गयी है। इसके बावजूद पहली बार शहरी आबादी की तुलना में ग्रामीण आबादी कम हुई है। शहरों में जहां नौ करोड़ दस लाख तो वहीं ग्रामीण आबादी में नौ करोड़ चार लाख की वृद्धि दर्ज की गई।
गाँवों के शहरीकरण और गाँवों से शहरों की तरफ हो रहे पलायन से खेती को भी काफी नुकसान हुआ है। लोगों ने खेती-किसानी से दूरी बनानी शुरू कर दी है। साल 1993 में देश कीकुल जीडीपी में कृषि का योगदान करीब 23 फीसदी था, जो साल 2012 में घटकर करीब 14 फीसदी रह गया। डॉ संजय सिंह कहते हैं, ”आजादी के बाद भारत की करीब 80 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर थी और जिससे 80 फीसदी आबादी का पेट भरता था। आज करीब 70 फीसदी आबादी खेती पर निर्भर है और यह बेमुश्किल 20 फीसदी आबादी का ही पेट भर पा रही है।”
यह लेख ग्रामीण समाचार पत्र गाँव कनेक्शन में प्रकाशित हो चुका है ।
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