Lahar
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पुरानी पत्तियाँ है जा रही ,
नयी पत्तियाँ है आ रही ।
टूट चुकी है टहनियाँ ,
लगती है मानो दादी
की पुरानी कहानियाँ ।
आ रहा बसंत है ,
बढ़ रहा उमंग है ।
तड़पा रही दिन में ,
सूर्य की कशिश है |
कर रही आलिंगन ,
रात में चाँद की कशिश है |
अब तो हर तरफ ,
मौसम सुहाना है |
लगता है हमे भी ,
अपना दुःख भुलाना है |
आ रहा बसंत है ,
बढ़ रहा उमंग है ।
इस बसंत में कर रहा प्रण मै भी हूँ !
भारत को क्षितिज पर ले जाना है
क्योकि भारतीय मै भी हूँ ।।
आ रहा बसंत है ,
बढ़ रहा उमंग है ।
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