भारत के एक छोटे से गाँव किठोर मे जन्मे मोहम्मद अजहर उन चंद भारतीयों मे से एक है जिनकी माली हालत तो ठीक नहीं है लेकिन आँखों मे बड़े सपने और उस सपनो को हकीकत मे बदलने के लिए दिल मे ज़ज्बा होता है । मजदूर पिता के घर जन्मे अजहर का बचपन दूसरों से कुछ अलग ही रहा | वो कहते है की जिस उम्र में बच्चे खेलते – कूदते है उस उम्र मे मैंने दुनियादारी को करीब से देखना शुरू कर दिया था । सुबह जब नींद टूटती तब से और देर रात तक अपने अब्बू को खुरपे , हसिये और गडासे पर धार लगाते हुए देखता था ।
हम 5 भाई – बहनों का पेट पालने के लिए अब्बू दिन रात मेहनत करते थे । जेठ माह की चिडचिडाती धूप हो या जनवरी माह की कड़ाके की ठण्ड अब्बू दिन – रात मेहनत करते थे । अपने बचपन के लम्हों का जिक्र करते – करते अजहर भावुक हो जाते है और अनायास ही वो जगजीत सिंह की प्रसिद्ध गज़ल ” वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी ” गुनगुनाने लगते है । अजहर पत्रकार बनना चाहते है । जब उनके सभी दोस्तों ने फ़ौज , बैंक और इंजीनियरिंग मे अपना भविष्य तलाशा तब अजहर ने पत्रकारिता को ही अपना करियर क्यों चुना ? इस प्रश्न के जवाब मे अजहर साल 2007 के उस घटना का जिक्र करते है जिसने उन्हें पत्रकारिता तरफ खिंचा , वो बड़े गर्व के साथ कहते है की जब मै बारहवीं मे था तब मैंने एक अंतर्देशीय लिफाफे मे मेरठ शहर में हो रही बिजली चोरी पर लिख कर दैनिक जागरण को भेजा था और उस पत्र को दैनिक जागरण ने मेरी फोटो के साथ प्रकाशित किया था । वो छोटे बच्चे की तरह उत्साहित होकर कहते है की वो पत्र अब भी मेरे पास है । अजहर आज भारतीय जन संचार संस्थान के छात्र है लेकिन उनका यहाँ तक का सफ़र आसान नहीं रहा । करीब 1 लाख की फीस भरने के लिए उन्होंने एक NGO में 6 महीने तक काम भी किया , कुछ पैसे दोस्तों से उधार लिए तो कुछ अब्बू ने जुगाड़ कर दिया । वो अगले सेमेस्टर की फीस कैसे भरेंगे उन्हें नहीं पता है लेकिन उन्हें अल्लाह पर भरोसा है वो कहते है की जिस मालिक ने हमें यहाँ तक लाया है वहीं आगे भी ले जाएगा । वो चाहते है कि वो एसा पत्रकार बने जिसकी बातो को लोग ध्यान से सुने । वो पत्रकारिता के माध्यम से समाज के लिए कुछ अच्छा करना चाहते है । अजहर गरीबी को अभिशाप नहीं वरदान मानते है । वो एक दार्शनिक की तरह कहते है ” गरीबी हमें संघर्ष करना सिखाती है । ” बातो ही बातों में वो अपने थैले से एक पन्नी निकालते है जिसमे मुश्किल से करीब 15-20 बादाम के दाने होंगे । वो हलकी मुस्कुराहट के साथ कहते है की माँ तो माँ होती है गाँव गया था तो माँ ने चुपके से दिए थे कहा था की रोज 2 – 2 बादाम सुबह शाम खाना । लीजिये आप भी खाइए। मै अजहर की मासूमियत को टकाटक देखते रह जाता हूँ ।
जब मैंने उनसे राजनीती के बारे मे बात की तो वो कहते है की आने वाले समय मे राजनीती युवाओं की ही है । वो युवाओ को नसीहत देते हुए कहते है की युवाओ को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए । वो राजनीती के लिए पैसा नहीं बल्कि त्याग जरुरी मानते है ।
अजहर चाहते है की उन्हें जल्द से जल्द कोई अच्छी नौकरी मिल जाये ताकि वो अच्छे पैसे कमा सके और अपने अब्बू के कन्धों पर से कुछ बोझ कम कर सके । अचानक उनके चेहरे की मुस्कुराहट गंभीरता में बदल जाती है वो धीमे लहजे में कहते है की अभी दो बड़ी बहनों की शादी भी करनी है । मेरी दिली ख्वाहिश है की मै अपने अब्बू – अम्मी को एरोप्लेन से आगरा ले जाऊ और उन्हें ताज महल दिखाऊ । मोहम्मद अजहर की आंखे नीले आसमान की तरफ देखने लगती । पंकज कुमार “लहर” भारतीय जन संचार संस्थान
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