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आ रहा बसंत है

Lahar
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आ रहा  बसंत है , बढ़ रहा उमंग है !

पुरानी पत्तियाँ है जा रही ,

नयी पत्तियाँ है आ रही |


टूट चुकी है टहनियाँ,

लगती है मानों ,

दादी की पुरानी कहानियां |



आ रहा  बसंत है , बढ़ रहा उमंग है !

पुरानी पत्तियाँ है जा रही ,

नयी पत्तियाँ है आ रही |


तड़पा रही दिन में ,

सूर्य की तपिश है |

कर रही आलिंग्न रात में ,

चाँद की कशिश है |


आ रहा बसंत है , बढ़ रहा उमंग है |


अब तो हर तरफ मौसम सुहाना है |

लगता है हमे भी अपना दुःख भुलाना है |


आ रहा बसंत है , बढ़ रहा उमंग है |


इस बसंत में कर रहा प्रण मै भी हूँ ,

भारत को क्षितिज़ पर ले जाना है !

क्यों की भारतीय मै भी हूँ |


आ रहा  बसंत है , बढ़ रहा उमंग है !

पुरानी पत्तियाँ है जा रही ,

नयी पत्तियाँ है आ रही |

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