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शाम और जाम ………..
Lahar
28 Posts
340 Comments
ए साकी पिला तू मुझको आज इतना ,
की आज मुझको होश ना रहे
ए साकी चढ़ तू मुझपे आज इतना
की उनके बिछड़ने का अफसोश ना रहे
शाम होते ही साकी तेरी याद आती है
दुड़ता हु तुझको मै गली मुहल्लों में
जाने किधर चली जाती है
पैर चल पड़ते है उस तरफ जिधर मैखाने आते है
टूटे हुए दिलो के मेले जहाँ सजाये जाते है
शाम होते ही साकी तेरी याद आती है
दुड़ता हु तुझको मै गली मुहल्लों में
जाने किधर चली जाती है
एक तू ही तो है जो कल भी थी मेरी
और आज भी है सिर्फ मेरी, हा सिर्फ मेरी
औरो का क्या भरोसा
वे बीच में ही छोड़ जाते है
दिल तोड़ते है हमारा और
बदनाम भी हमें ही किये जाते है
शाम होते ही साकी तेरी याद आती है
दुड़ता हु तुझको मै गली मुहल्लों में
जाने किधर चली जाती है
साकी तेरे साथ ही तो
हम अपना दर्द बाटते है
एक तू ही तो है जिसके साथ
हर रात हम सुहाग रात मानते है
शाम होते ही साकी तेरी याद आती है
दुड़ता हु तुझको मै गली मुहल्लों में
जाने किधर चली जाती है
तू चढ़ती जाती है मुझ पर इस कदर
जैसे चढ़ रही हो शाम चांदनी पर
शाम होते ही साकी तेरी याद आती है
दुड़ता हु तुझको मै गली मुहल्लों में
जाने किधर चली जाती है
हर शाम से शुरू होती
अपनी सुहागरात है
मेरे और तेरे लिए तो
अब ये आम बात है
शाम होते ही साकी तेरी याद आती है
दुड़ता हु तुझको मै गली मुहल्लों में
जाने किधर चली जाती है
पहले मै तुझपे चढ़ता
फिर तू मुझपे चढ़ती
चढ़ने – उतरने का
ये खेल रात भर चलता है
शाम होते ही साकी तेरी याद आती है
दुड़ता हु तुझको मै गली मुहल्लों में
जाने किधर चली जाती है
प्यार से तू मुझको कही और ले जाती है
रूह को देती चैन मेरे और गम को ले जाती है
शाम होते ही साकी तेरी याद आती है
दुड़ता हु तुझको मै गली मुहल्लों में
जाने किधर चली जाती है
अब तो साकी बस तेरा ही सहारा है
न कोई और अब हमारा है
बना ले तू मुझको अपना बस तेरा ही सहारा है
न जी सकूँगा अब तो मरने का इरादा है
शाम होते ही साकी तेरी याद आती है
दुड़ता हु तुझको मै गली मुहल्लों में
जाने किधर चली जाती है
देख ले ये बेवफा नहीं है
हम अकेले इस भीढ़ में
साकी तू भी चलना
साथ मेरे कब्र में
शाम होते ही साकी तेरी याद आती है
दुड़ता हु तुझको मै गली मुहल्लों में
जाने किधर चली जाती है
बैठ के साकी साथ में
जाम पियेंगे रात में
साथ चलना साकी
तू भी मेरे कब्र में
तू मुझको पीना
मै तुझको पीयू
यूँ ही रात गुजरती जायेगी
तू मुझ पर शबनम की तरह चढ़ती जायेगी
शाम होते ही साकी तेरी याद आती है
दुड़ता हु तुझको मै गली मुहल्लों में
जाने किधर चली जाती है
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