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दर्द – ए – मुहब्बत

Lahar
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हु आज नजरो के सामने ,

तो मेरी क़द्र नहीं है


पकड़ कर दामन किसी और का

कहती है तुम्हरी जरुरत नहीं है


हो जाऊंगा जिस दिन

मै दुनिया से रुखसत ,


तुम भी रोअगी मेरे कब्र गाह पर आकर


और कहोगी ए जालिम खुदा ,

तू तो इतना बेदर्द नहीं है

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