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कर्म फूट गए मेरे …..

Lahar
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कर्म फूट गए मेरे , अब तो भाग्य भी रूठा |
जाने क्यों हिन्दुस्तानियों का , हिंदी से दिल टुटा ||

 

जयशंकर निराला प्रेमचंद्र , करते थे आलिंगन मुझको |
पर आज सभी युवा , धिक्कारते है मुझको ||

 

अब तो हिंद में भी ना रही हिंदी |
जो कल तक थी इसके माथे की बिंदी ||

 

Hi , Hello , Thanx का जमाना है |
अंग्रेजी की इस भीड़ में मुझ हिंदी को दब जाना है ||

 

अब इस अबला हिंदी की इज्जत कौन बचाएगा |
शायद फिर से कोई प्रेमचंद आएगा ||

 

हाँ फिर से प्रेमचंद आएगा |
फिर से इसका अधिकार दिलाएगा ||

 

विश्व के शिखर पर इसे सजाएगा |
हर हिन्दुस्तानी के दिल में हिंदी को बसाएगा ||

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